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असफलता / अजित कुमार
Kavita Kosh से
नीले नभ में
भूरे बादल का
पैबन्द
लगाया था जो तूने
छितर गया ।
मँडराते हैं कौवे ।
सब तन खा चुकने पर—
मिल ही जायगी
उनको
बादल की भीगी हुई पलक के नीचे
ठिठकी, नन्हीं पुतली—
टाँक उसे देंगे
नभ के अजेय वक्षस्थल पर
तब भी
वह
मौन शांत अविभाजित होगा
विजय-दर्प से तना ।