भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

असम्बद्ध / शब्द प्रकाश / धरनीदास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

राम नगर में बनो बनावो, धरनीश्वर को द्वारा।
लैहैं जानि मानि महिमडल, साधु सन्त संचारा॥1॥

चारि सम्प्रदा चारि संगती, चारि खूँट यश पैहैं।
बाल गेपाल दास धरनी के, धरनीश्वरी कहै हैँ॥2॥