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असम्भव शहर में रात / नवीन सागर
Kavita Kosh से
मैं रूक गया देखने
आखिर कौन है
मैंने देखा अभी रूकना उसका
अपने पास
अभी वह परछाई के भीतर
दिख नहीं रहा है
उसे देखने जाता हूं अचानक उसके भीतर
तो दिख नहीं रहा हूं मैं.
एक परछाई बची है
पूरे नाटक के बाद
थिएटर बंद है उसके बाहर
असंभव शहर में रात
घण्टों की तरह बज रही है.