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असम्भव समय में कविता / राकेश रोहित
Kavita Kosh से
हर दिन वर्णमाला का एक अक्षर मैं भूल जाता हूँ
हर दिन टूट जाती है अन्तर की एक लय
हर दिन सूख जाता है एक हरा पत्ता
हर दिन मैं तुमको खो देता हूँ ज़रा-ज़रा !
ऐसे असम्भव समय में लिखता हूँ मैं कविता
जैसे इस सृष्टि में मैं जीवन को धारण करता हूँ
जैसे वीरान आकाशगंगा से एक गूँज उठती है
और गुनगुनाती है एक गीत अकेली धरा !!