असली जाड्डे बेरा ना कित खूगे / सुन्दर कटारिया
जाड्डा तो जिब पड्या करता जिब म्हैस्यां के काटडे मरया करते
बूड्ढे सोड़ मै तै लिकड़ण तै डरया करते।
सुबह सात बजे तक अंधेरा छाया रहैता
दूधिया भी बांदर आल़ा टोप औढ़ कै आया रहैता।
डांगरा की सान्नी भेणा भी करड़ा काम था
दिन तो सील़क मै ए कटज्या था कितका घाम था।
धुंध इतनी पड़ती अक मूंह नै मूंह नही दीखता
काच्चा बाल़क भी अक्तूबर के महीने तै ए छींकता।
छोट्टे बाल़क वारी उठ्ठया करते
सांस लेते ना भप्पारे छुट्टया करते।
गा म्हैंस भी धुंध मै ए न्हा लिया करती
दादी गाजर का हलवा बिना फ्रिज के जमा लिया करती।
जाड्डयां मै दांत अोल़्यां से किटकिटाते
खाट पै गद्देला अर सोड़ हमेशा बिछे पाते।
दादी धोरै कुण सा सोवैगा करड़ा मसला था
सिरफ उसकी खाट तल़ै अंगारियां का तसला था।
संकरात पै न्हाणा भी करड़ा काम होया करता
म्हारला दादा तो गर्मियां मै भी न्हाता रोया करता।
चाची ताई खूब खोरती छिक कै रोत्ती
बाल़ां मै ढेरे पड़ज्याते पर कदे सिर नही धोती।
बाल़क लत्ते तक बदलणे भूल ज्याया करते
स्कूल जाण ताहीं बस मूंह धुआया करते।
जिब कीहं कै गैस अर चूल्हे पाया करते
शकरगन्दी भी हारे पै भून्द कै खाया करते।
सोमती हाणां सबमै बंटती मूंमफली
पीते तरड़ाया दूध, खाते गुड़ की डल़ी।
पर परदूषण का बोलबाला आज होग्या
धुन्ध की जगहां धूम्मे का राज होग्या।
ना काल़ा कम्बल़ रह्या ना ओढते धोल़ा खेस
कयी बै सोचूं सूं के यो हे था भारत देस।
ना चील दीक्खैं, ना चिडिया, ना टटीरी ना काग
अाम, अमरूद, अनार, बेर के कोन्या रहगे बाग।
ना घरां मैं सोड़ ना गद्देले ना खाट
ईब वे जाड्डे कोन्या आवैं मतना देक्खो बाट।
ईब तो ग्लोबल वार्मिंग के बीज बूगे
अर असली जाड्डे तो बेरा ना कित खूगे।