भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
असीम सौन्दर्य की एक लहर / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
असीम सौन्दर्य की एक लहर,
नदी से नहीं--
समुद्र से नहीं
देखते ही देखते
उमड़ी तुम्हारे शरीर से,
छाप कर छा गई
फैल गई मुझ पर !