भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अस्तित्त्व / नवनीत पाण्डे

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अपने समय में मैं हूं
आलोचक नहीं मानते
उससे थोड़ा आगे हूं कि पीछे
इस पर भी मतभेद हैं
वे लगे हैं मेरी सच्चाइयों के
छिलके उतारने में
गंथ से
आंखों में छलक आए हैं आंसू
फ़िर भी लगे हैं कि लगे हैं
बिना यह जाने कि
छिलका-छिलका होने पर भी
मैं वही रहूंगा, जो हूं
पूरे अस्तित्त्व के साथ
समय के भीतर भी-बाहर भी