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अस्तित्व का पत्थर / बाल गंगाधर 'बागी'

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ये पहाड़ पत्थरों में बदल जाओ
अपने मजबूत बाजुओं को फैलाओ
वैमनस्य को निशाना बना करके
हर आस्था के विभेद को मिटाओ

लेकिन उन पत्थरों में न शामिल होना
अपने वजूद पर जीना स्वयं न खोना
तुम्हारे दम से सभ्यतायें पल्लवित हैं
भगवान बनाकर कुछ लोग भ्रमित हैं

फूल मालाओं से कैसे-कैसे पूजा किया
और वैज्ञानिकता का बोध बेनाम किया
एक पत्थर से भगवानों का निर्माण कर
करोड़ों लोगों को भरमाके परेशान किया

अब उठो और कहो पत्थर हो पहाड़ों के
समानता के निर्माण में हर उजालों के
यहाँ बरसोगे जहाँ हत्या बलात्कार होगा
मानवता को जलाते बुझाते मशालों पे

जिस दिन नकार दोगे, भगवान बनने से
वे बिन भगवान मंदिर न जा सकेंगे
पाखण्ड का उद्योग न बचा सकेंगे
उसकी आड़ में देह नोच न खा सकंेगे

किसी नारी को पत्थर न बनने देना
वर्ना कितनी नारियां अहिल्या बनेगी
देवदासी सी पत्थर पीछे पिस जायेंगी
फिर वजूद का पत्थर न उठा पायेंगी....