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अस्तित्व बटा शून्य / दीपक मशाल
Kavita Kosh से
एक महकती खुशबू की तरह
ढंके रहती थीं तुम मुझे..
तुम्हारे जाने से
आसपास की सारी हवाएं भी चली गयीं..
एक निर्वात पैदा हो गया
मेरे पैरों के नीचे की ज़मीन ने भी
इंकार कर दिया
गुरुत्वाकर्षण देने से..
अब त्रिशंकु बन गया हूँ बिना हवा बिना ज़मीन के मैं
एक शून्य सा पैदा हो गया जीवन में
जिसे जब अपने हिस्से में बांटने को चाहा
तो वो शून्य भी अवचेतन से अचेतन कर गया..
मुझे भी शून्य बना गया
और मेरे हिस्से कुछ ना आया..