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अस्तित्व बेचिकऽ अपन सभ घर सजा लियऽ / बाबा बैद्यनाथ झा
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अस्तित्व बेचिकऽ अपन सभ घर सजा लियऽ
टी.वी. आ फ्रीज कीनि रेडियो बजा लियऽ
कहुना हो हँसोथू दुहु हाथसँ रुपैया
सभकिछु बिसरि विलासी-जिनगीक मजा लियऽ
खान्दाकेर प्रतिष्ठा अक्षुण्ण जे बचल छल
किछु स्वार्थकेर खातिर तकरा भजा लियऽ
अपन संस्कृतिकेँ अहाँ छोड़ू आ लात मारू
पाश्चात्य-सभ्यतामे डिस्कोक मजा लियऽ
अपनेक स्वरूप असली क्यो जानि ने सकैए
बनि पूज्य एहि जगमे सभस पुजा लियऽ
कहियो जँ मोन पड़य अप्पन अतीत जीवन
बस आँखि मूनि दूनू कनि´े लजा लियऽ