Last modified on 18 अगस्त 2015, at 14:53

अस्त्र शस्त्र रोक आब मामिलाक मारि / चन्दा झा

अस्त्र शस्त्र रोक आब मामिलाक मारि।
भाइ भाइकेँ पढ़ैछ नित्य नित्य गारि॥
ठक्क लोक हक्क पाब साधु कैँ उजारि।
दैव जे ललाट लेख के सकैछ टारि?

चाही नहि धन, ललितवाम, पकवान जिलेबी,
मनोविनोदक हेतु अमरपति सदन न टेबी।
ई अन्तर अभिलाष हमर करुणामयि देवी
भक्ति भाव सँ सतत अहिंक पदपंकज सेवी॥

अन्न महग, डगमग अछि भारत, हयत कोना निस्तारा
उत्तर पश्चिम भूमि अगम्या पर्वत असह तुषारा।
धर्म-विरोधी सहसह करइछ, कुमत कथा विस्तारा
करथु कृपा जगजननी देवी महिसीवाली तारा॥

मिथिला की छलि की भय गेलि,
याज्ञवल्क्य मुनि, जनक नृपतिवर
ज्ञान भक्ति सौं गेलि।
वाचस्पति मिश्रादि जगद्गुरु
निर्जित बौद्ध झमेलि
से शारदा स्वर्ग जनि गेली
बढ़ल कुविद्या केलि।
वर्णाश्रम विधि ककरहु रुचि नहि
श्रुति श्रद्धाकेँ ठेलि
पूजा पाठ ध्यान वकमुद्रा
सभटा वंचन खेलि।
कह कविचन्द्र कचहरी भरिदिन
बहुत भोग कर जेलि,
कलह कराय धर्म धन नाशे
कलिक दरिद्रा चेलि।