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अस्थि कलशकेँ कोटि प्रणाम / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

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श्रीराम जयराम जयजय राम
जयतु जानकीपति श्रीराम।
रावणकुल पनुघल की फेर,
जे करैत अछि एहन अन्हेर। श्रीराम जयराम
अथवा की पुनि जन्मल कंस
चतरि रहल की दनुजक वंश। श्रीराम जयराम
नाम मुलायम क्रिया कठोर,
सीबय पड़त जकर दुहु ठोर। श्रीराम जयराम
जन्मल कलियुगिया शिशुपाल,
जकरा शिर चढ़ि नाचय काल। श्रीराम जयराम
जकर विधाता सहजहि वक्र,
कृष्णक चलत सुदर्शन चक्र। श्रीराम जयराम
यादव कुल कुड़हरि अवतार,
कयल राम भक्तक संहार। श्रीराम जयराम
भगवद ध्वज टेकल हनुमान,
लेथु सैह पापी केर प्राण। श्रीराम जयराम
विश्वनाथहुक गलल प्रताप,
सात जन्म सहता सन्ताप। श्रीराम जयराम
मायक कोखि कलंकित कयल,
अनकर पाप अपन शिर धयल। श्रीराम जयराम
क्षमाकरत नहिए इतिहास,
युग युग लोक करत उसहास। श्रीराम जयराम
रामजन्म-भूमिक रक्षार्थ,
अस्थि-कलश कहि रहल यथार्थ। श्रीराम जयराम
व्यर्थ न होयत एते बलिदान,
साक्षी छथि दिनकर भगवान। श्रीराम जयराम
अपन-अपन अर्पित कय प्राण,
रखलनि जे हिन्दुत्वक मान। श्रीराम जयराम
सद्यः मुक्ति पाबि से लेल,
जीवित जनकेँ शिक्षा देल। श्रीराम जयराम
थिक नश्वर ई मनुज शरीर,
चलै चलू सब सरयूतीर। श्रीराम जयराम
जननी जनक दुहू जन धन्य,
जे-जन्मौलनि भक्त अनन्य। श्रीराम जयराम
युग-युग अमर रहत जे नाम,
ताहि अस्थिकेँ कोटि प्रणाम।
श्रीराम जयराम जयजय राम।
जयतु जानकी पति श्री राम॥