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अस्पताल / मृदुला शुक्ला

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अस्पताल में अपने बिस्तर पर
अकेले लेटे, आप पाते हैं
आपके पास पर्याप्त कारण नहीं है दुखी होने का
वहां मौजूद लोगों के चेहरे पे नाचती भय की रेखाएं
भारी पड़ जाती हैं आपके हर दुःख पर
  
आप देखते हैं डॉ. का सफ़ेद चोगा पहनना उसे
नहीं साबित कर देता धवल ह्रदय होना
अक्सर साबित करता है,
उसकी रगों में बहते लाल रंग का सफ़ेद हो जाना

बेवजह मुस्कुराती नर्सों के पास
कोई वाजिब वजह नहीं होती मुस्कुराने की
आप पातें हैं कि, उनके मुस्कुराने का सम्बन्ध
उनकी किसी आतंरिक प्रसन्नता से नहीं
उनके चूल्हे के रोटी से है

विभिन्न प्रकार के कचरों के निस्तारण के लिए रखे
लाल, पीले, काले, डिब्बे
आपको अपने ही मस्तिष्क के
गुप्त तहखानों से लगते हैं
मृत्यु के कोलाहल से भरी इस ईमारत में
जीवन आकांक्षा नहीं आशा होती है
डॉक्टर के आखिरी न में सर हिलाने तक

चपटी थैलिनुमा बोतल खूटियों पर लटकता रक्त
अक्सर टिकट होता है
आगे की सवारी का
जीवन की रेलगाड़ी में

यहाँ दफ़न होती हैं मृत आशाएं
लिपटी सफ़ेद चादरों में
मृतात्माओं की जगह
उनके प्रेत नहीं ठहरते यहाँ
चल पड़ते हैं अपने रोते बिलखते परिजनों के पीछे

प्रसव पीदामुक्त माँ की मुस्कुराहटें
उलट देती हैं
पीड़ा की सारी पिछली ज्ञात परिभाषाएँ

नवजातों के कोमल रुदन परास्त करते रहते हैं
तीक्ष्ण मृत्युगंधी विलापों को

विश्वास की पराकाष्ठा, उम्मीदों के तिलस्म होते हैं
टूटी कसौटियों खंडित आस्थाओं के शवदाहगृह होते हैं...अस्पताल|