अस्पताल / शंख घोष / रोहित प्रसाद पथिक
नर्स - 1
सो नहीं पा रहा हूँ
प्रत्येक हड्डी के भीतर जमा हुआ हैं भूसा
पैरों से लेकर सिर तक
फैल रहे हैं अश्लील जीवाणु
भूसा कहने लगा —
कौन कहाँ ? सिस्टर, सिस्टर…
‘हुआ क्या ? चुप करके शान्ति से सो जाओ
इसके अलावा फल खा सकते हो ।’
सफ़ेद बाल, लाल बेल्ट पहने आ रही है नर्स…!
नर्स - 2
रात दो बजे
चुपचाप दो लड़कियाँ पास के केबिन में ढुकती हैं
बेहोश युवक की आत्मा
कुछ और मरी या नहीं
यह पता करने
‘अभी भी उतना नहीं…।’
होंठ दबाकर एक लड़की दूसरी से बोलती है
‘तब क्या सो रहा है वह या कि बेहोश है या
डॉक्टर की ज़रूरत है ?’
‘रहने दो… बाबा !’
फनफनाकर वे दोनों लड़कियाँ जाती हैं
और कहती हैं :
‘हम लोग क्या कर सकते हैं
जब तक ईश्वर कुछ न करे ?’
नर्स - 3
दो एप्रन पहनी सुन्दर महिलाएँ
एप्रन के नीचे दबा रखी है अपनी हंसी
मुंह पर मरुभूमि लेकर नियमित
सुबह का बिछौना सजाती हैं बारहों महीने
यदि मैं कहता हूँ —
‘लाइए, मैं भी चादर का एक कोना पकड़ लूँ’
तो वह मुझे फांसी पर लटका देगी…?
मूल बांग्ला से अनुवाद : रोहित प्रसाद पथिक