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अस्ल मुद्दों से तो भटका रहे हैं हमको वे / कैलाश मनहर

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अस्ल मुद्दों से तो भटका रहे हैं हमको वे ।
कँटीली बाड़ में अटका रहे हैं हमको वे ।

नोट-बन्दी तो कभी गाय कभी जी०एस०टी०,
रोज़ी-रोटी से पर लटका रहे हैं हमको वे ।

विपक्ष-मुक्त ही बनना है कामना उन की,
परस्पर तोड़ कर चटका रहे हैं हमको वे ।

वतन परस्त हैं, बस, वे कि हम गद्दार सभी,
कूड़े-कचरे-सा ही फटका रहे हैं हमको वे ।

रंजिशो-दुश्मनी रखते हैं अपने दिल में औ’
दूसरों का दिखा खटका रहे हैं हमको वे ।