Last modified on 15 दिसम्बर 2019, at 19:36

अस्ल में सारी हवाएँ आँधियाँ होती नहीं / शुचि 'भवि'

अस्ल में सारी हवाएँ आँधियाँ होती नहीं
धूप की आमद को सारी खिड़कियाँ होती नहीं

ऐ बशर आवाज़ अपनी तेज़ थोड़ी कर ले तू
इस ज़मीं पर आसमां सी चुप्पियाँ होती नहीं

हमने ख़ुद को रंग कर देखा है तेरे प्यार में
वैसे पक्के रंग की पिचकारियाँ होती नहीं

उनको आती है महक सूखे गुलों से आज भी
हाँ मगर अब उन गुलों पे तितलियाँ होती नहीं

'भवि' की सब ग़ुस्ताखियाँ अब सिर्फ़ तेरे सँग हैं
साथ सबके हों जो वो बदमाशियाँ होती नहीं