भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अस्वीकार / सुधीर सक्सेना
Kavita Kosh से
मेरा गुज़ारा मुमकिन नहीं था
उसके साथ कतई नहीं
जिसके साथ मेरी आवृत्ति नहीं मिलती थी
मुझे घृणा के साथ जीना
कुबूल था
बनावटी प्रेम के साथ जीना
हर्गिज़ नहीं
मै नहीं चाहता था मरना
अपने ही घर में हर पल