अहं (ईगो) / आभा झा
पुरूष-प्रकृतिक योग श्रृष्टि थिक
सत्य सनातन नर-नारी:
विधना केर सुन्दर सन रचना
मिलि घीचथि जीवनक गाड़ी।
बदलि गेलै अछि तन मन सबहक
बदलल सब लौकिक व्यवहार:
मुदा अहं केर दंश ने बदलल
करय छहोछित घर परिवार।
अहं सर्प बनि छत्र काढ़ि कऽ
जतय जखन फुफकार करए:
प्रेम पराजित मुर्छित होइ छथि
नेहक बाती खाख बनए।
तेहन तेज धधकै ई ज्वाला
झड़कि रहल दाम्पत्य अनेक
अपनहिं गृह अपमानित गृहणी
कुहरि-कुहरि कऽ मरथि कतेक।
ओझराएल एहि चक्रव्यूह मे
अभिमन्यु बनि जौं फँसबै:
प्रेमक मधुरस धार ने पाएब
अपटी खेत में जा खसबै।
सफल गृहस्थीक मंत्र सिखौलनि
परमेश्वर शंकर भगवान:
अर्ध नारि ईश्वर बनि स्वयमहिं
कएलन्हि सकल जगत कल्याण।
आशुतोष शिवजी सँ सीखू
अहं सर्प कें दमन करब:
जीवन कें सब रस पाएब जौं
"दुष्ट ईगो" कें वमन करब।