भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अहले-दिल आंख जिधर खोलेंगे / नासिर काज़मी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अहले-दिल आंख जिधर खोलेंगे
इक दबिस्ताने-हुनर खोलेंगे

वहीं रुक जाएंगे तारों के क़दम
हम जहां रख़्ते-सफ़र खोलेंगे

बेहरे-ईजाद खतरनाक सही
हम ही अब उसका भँवर खोलेंगे

कुंज में बैठे हैं चुप-चाप तयूर
बर्फ पिघलेगी तो पर खोलेंगे

आज की रात न सोना यारो
आज हम सातवां दर खोलेंगे।