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अहल-ए-दवल में धूम थी रोज़-ए-सईद की / जोश मलीहाबादी

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अहल-ए-दवल में धूम थी रोज़-ए-सईद की
मुफ़्लिस के दिल में थी न किरन भी उम्मीद की

इतने में और चरख़ ने मट्टी पलीद की
बच्चे ने मुस्कुरा के ख़बर दी जो ईद की

फ़र्त-ए-मिहन से नब्ज़ की रफ़्तार रुक गई
माँ-बाप की निगाह उठी और झुक गई

आँखें झुकीं कि दस्त-ए-तिही पर नज़र गई
बच्चे के वल-वलों की दिलों तक ख़बर गई

ज़ुल्फ़-ए-सबात ग़म की हवा से बिखर गई
बर्छी सी एक दिल से जिगर तक उतर गई

दोनों हुजूम-ए-ग़म से हम-आग़ोश हो गये
इक दूसरे को देख के ख़ामोश हो गये