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अहसास / तुम्हारे लिए / मधुप मोहता
Kavita Kosh से
चलो फिर से समेटें
तुम्हारी मुसकराहट इस नज़र में
और खुशबू पत्तियों की एक पुड़िया में
तुम्हारे गेसुआंे को हाशियों पर बिखर जाने दें
और मेहँदी से रचें इक नज़्म
पिरोएँ लफ़्ज़ पायल में
रुनझुन गुनगुनाने दें
तुम्हारी याद के जुगनू समेटें अँजुली भर लें
तुम्हारे रंग सपनों में भरें
पलकों में समेटें तुम्हें
चलो फिर से समेटें
तुम्हारे रेशमी अहसास साँसों में
और तुम्हारा लम्स पहनें उँगलियों में,
तुम्हारे दर्द को फिर धड़कनों में उतर जाने दें
और जला लें दिल के मयखाने में
तुम्हारे ग़म की शम’अ
झिलमिलाने दें
तुम्हें आग़ोश में लें
किसी सपने की बाँहों में समेटें
बाँहों में समेटें तुम्हें
चलो फिर से समेटें।