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अहाँ नहिं अयलियै (विरहक-पत्र) / कस्तूरी झा ‘कोकिल’

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हमरा पठाय रहि गेलियै ये!
अहाँ नहं अयलियै।
एकठाम रहैत मोन ऊबल अहाँकऽ,
भानस करैत त मोन थाकल अहाँकऽ;
गाम जाय लेल हठ कैलियै ये!
अहाँ नहिं अयलियै।
सोलह बरीस सँसंगे रहलियै,
दुःख सुखकेर दिल संगे गमलियै,
आय किये तनियों हटलियै ये!
अहाँ नहिं अयलियै।
किछु दिन में अहाँ अयबै, जनैत छी,
तें आँगुर पर दिन हऽम गिनैत छी।
एतबो किये तड़पैलियै ये!
अहाँ नहिं अयलियै।
छ-टा धीया-पूताह हमरा के देलियै
नींक जकाँ राखबै सेहो कहलियै।
सातम के संगे रखलियै ये!
अहाँ नहिं अयलियै।
धऽर सें बिदाकाल अहाँ मोनपारियौ,
के-के-ढाढ़ रहैथि संग में चारियौ;
कधी लेल अहाँ काँनलियै ये?
अहाँ नहिं अयलियै।
अहाँक बिना सून एतऽ लगै अछि,
भीतरे भीतर मोन हमर काँनै अछि।
कोनाँ अहाँ रहिगेलियै ये!
अहाँ नहिं अयलियै।

-17.11.1977