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अहिपन / राजकमल चौधरी
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हिपनमे नहि लिखू फूल पात-लता-चक्र
हे स्वप्न-संभवा कामिनी,
आब नहि घोरू सिनूर आ उज्जर पिठार!
जखन पूर्णिमेक साँझमे
चन्द्रमा भ’ गेल छथि पीयर आ बक्र
आब नहि फोलिक’ राखू
अप्पन मोनक दुआर!
हे स्वप्न-संभवा कामिनी,
आब एहि घर-आङनमे अनागतक प्रतीक्षा
जुनि करू, जुनि करू...
अहिपनक फूल-पात-लता बनि जायत
गहुमन साप,
कोनो देवता नहि क’ सकताह अहाँक प्राण-रक्षा
पावनिक राति बीति जायत पूजा-विहीन
परिणय-विहीन!
(मिथिला मिहिर: 5.12.65)