अहो प्रिय / लता सिन्हा ‘ज्योतिर्मय’
अंतर्मन प्रीत बहे तेरी
धड़कन में गयो समाय
बसे नयनन में, त्यों रोती नहीं
अंसूअन संग बह न जाय....
छवि अवलोकत दिन जाय...
तन सावन सत श्रंृगार करे
तू भस्म रमा, मन मेरा हरे,
गले रूद्राक्ष, बने प्रणय साक्ष
गति स्पन्दन बढ़ जाय...
छवि अवलोकत दिन जाय....
मन-मधुवन हरश्रृंगार झरे
हिय विह्वल हो मनुहार करे,
मधुर मिलन सुन, हृदय पटल
मन-मयूरा नाचत जाय....
छवि अवलोकत दिन जाय....
मेरे महादेव तेरे चरण मध्य
मेरी आत्म ज्योत जल जाय
हो अंतिम पल आलिंगनबद्ध
उड़ प्राण-पखेरू पाए....
छवि अवलोकत दिन जाय....
तेरे चहूं ओर मेरे स्वप्न पले
वहीं दुनिया सिमटत जाय,
नित नयनों में नवरंग भर दे
मन दर्पण छवि मुसकाय...
छवि अवलोकत दिन जाय....
जल बिन जैसे मीन मरत
ज्योतिर्मय रही बुझाय,
बिन प्रीत तेरे, अहो... देव मेरे
कहीं जिनगी रूठ न जाय...
छवि अवलोकत दिन जाय...
अब जीवन शम्भु निनाद करे
तन मन से सारे प्रमाद हरे
शिवगामिनी भाव ही सुखद भये
स्वयं महादेव मन भाय....
छवि अवलोकत दिन जाय....