आग शहर में फैल रही है 
मगर सुरक्षित चूहे बिल में
भेद-भाव का यह दावानल 
हरी घास भी लगा जलाने 
भाषण में भी तेवर जागे 
चली आग फिर आग बुझाने
शोर उठा है जग का मालिक 
इस जग में है अब मुश्किल में
जिस हमीद के साथ राम की 
होती थी कल ईद-दिवाली 
आज एक-दूजे को घायल 
कर वो बजा रहें हैं ताली
ढूँढ रहा है शहर मसीहा 
बेदिल रहबर में, कातिल में
बचे हुए, अधजले शहर में 
है विलाप, है शोर-शराबा 
इधर आँच पर हाथ सेंकने 
आया है फिर से इक दावा 
सदमा खा, सदमा देने की 
उधर पल रही ख़्वाहिश दिल में