भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अेक सौ उगणीस / प्रमोद कुमार शर्मा
Kavita Kosh से
ब्रह्मांड है साम्हीं
-थामी
थोड़ी आपरै खयालां री लपट
च्यारूं कूंटां लपट-झपट
बियां भी बापड़ो बळ्यां बगै है
दिनूंदिन गळ्यां बगै है
भीतर सूं होय'र सतबायरो
कोई तो दिरावो लाई नैं सायरो
बीं री व्याकरण अलोप हुयगी है
गो-संस्कृति पादरी अर पोप हुयगी है
संक्रमण ठाडो है
गा लारै पाडो है
बळद है जाबक बूढा
अर चढाई पर गाडो है
जिन्नगी आ जिन्नगी
-आरोप हुयगी है।