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अेक सौ तयांळीस / प्रमोद कुमार शर्मा
Kavita Kosh से
थारी चाह करूं
राह करूं आगै री
जठै थे ऊभा हो रामजी
बठै तांईÓज तो पूगणो है
पण :
चाह रो ओ बीज
थंारै अंत:करण मांय ई ऊगणो है
ईयै वास्तै
सबद मांय थारो बीज तोपूं
अै मको! जागता रैइयो
भाखा रो खूंटो रोपूं।