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अेक सौ पिचपन / प्रमोद कुमार शर्मा
Kavita Kosh से
सम रैवणो है
-उतार-चढाव घणा
बणां भलांई कितरा ई स्याणा
पण :
करम तो साम्हीं आवसी पुराणा
हंसी खेल नीं है चाबणा
-होणी रा चणा
सबद रै आंगणै
गम रैवणो है
सम रैवणो है।