भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अे बया / ॠतुप्रिया
Kavita Kosh से
थूं
नान्ही सी चीड़ी
म्हारी लाडली
अे बया
थारौ आलणौ देख’र
थारी चतराई
अर मिणत नै
करूं नीवण
आँधी-मेह
तपती लू
अर ठरतै पाळै स्यूं
आपरै बचियां नै
बचावणआळौ इत्तौ फूटरौ
आलणौ बणाणौ
थूं कठै स्यूं सीख’र आई
अे बया
कदी टैम काड’र
म्हानै ई सिखा दे बाई।