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आँको तो / सरोज परमार
Kavita Kosh से
मेरे कद के ख़रीददार
कब तक सहूँगी
तेरी आँखों में तैरती प्यास ?
मेरा कद सरोवर तो नहीं
तेरी अँखियों में उलीच देती।
गंदला कीच भरा जोहड़
तैरती रही जिनमें भैंसें
मछली चुगते बगुले
टर्राते रहे मेंढक
कहीं कमल भी महकते हैं।
किनारे पर खड़ा, उनींदा सा
तकता बूढ़ा बरगद
जिसकी भरपूर छाया में
पुरसुकून अँगड़ाई लेना भला लगता है।
तभी तो
उसके पीले पत्ते
सड़े फल,सूखी टहनियाँ
झेलती रही।
तुम भी उसकी शाखा पर चढ़
मारो कंकरिया
और उठते हुए असँख्य घेरो को
आँको तो!