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आँखें खोलो / उषा यादव
Kavita Kosh से
पढ़ी किताबें तुमने इतनी,
पर सीखा है क्या, बोलो?
मुँह से कुछ कहने से पहले,
हृदय तराजू पर तोलो।
करवी बात न मुँह से निकले,
वाणी में मिसरी घोलो।
जालना कूढ़ना बुरी बात है,
मैल सभी मन का धोलो।
हँसता सूरज, खिलती कलियाँ,
तुम भी चहको, खुश हो लो।
दुनिया ही परिवार दिखेगी,
बस, मन की आँखे खोलो।