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आँखें दो जुडवाँ बहनें / सारा शगुफ़्ता
Kavita Kosh से
जब हमारे गुनाहों पे वक़्त उतरेगा
बंदे खरे हो जाएँगे
फिर हम तौबा के टाँकों से
ख़ुदा का लिबास सिएँगे
तुम ने समुंदर रहन रख छोड़ा
और घोंसलों से चुराया हुआ सोना
बच्चे के पहले दिन पे मल दिया गया
तुम दुख को पैवन्द करना
मेरे पास उधार ज़ियादा है और दुकान कम
आँखें दो जुड़वाँ बहनें
एक मेरे घर बियाही गई दूसरी तेरे घर
हाथ दौ सौतले भाई
जिन्हों ने आग में पड़ाव डाल रक्खा है