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आँखें नम / कविता भट्ट

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एक शाम; आँखें नम
दिल की ज़मीं भीगी हुई,
महसूस की मेरे ग़मों की गन्ध
और उसने बोया- प्रेमबीज।
प्रतिदिन स्वप्नजल से सींचकर,
बिन अपेक्षा ही मरुधरा को,
चुम्बनों से उर्वरा करता रहा।
आज मेरी आँखों में- वही शख़्स,
खोजता है- प्रेम का वटवृक्ष, हाँ।
ऊसरों में बीज बोना गुनाह है क्या ?
हाशिए पर प्रेम लिखना बुरा है क्या?