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आँखें / अरविन्द श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
मकबूल फ़िदा हुसैन को समर्पित
इकट्ठे हो रहे हैं सपने
धरती के सारे रंग-रोगन
तूलिका-कैनवास, फ़्रेम-अकृतियाँ
शिल्प-कला
बिंब और चित्र, चित्र के साथ
नई-नई भाषा
कई-कई नायक
नायिका-अभिसारिकाएँ सारे
कला दीर्घाओं मे
हुसैन के
इकट्ठे हो रहे हैं
धरती के अश्व सारे
गणपति-सरस्वती
मदर टेरेसा और बच्चे
अब्दुल और ताँगा
अमिताभ और शाहरूख
देह और ख़ौफ़
मुश्किल वक़्त और
बैचेन करती ख़बरें भी
हुसैन की चित्रकारी में
सौरमंडल-सा बड़ा है
हुसैन का आँगन
और कितनी छोटी है
हमारी आँखें !