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आँखें / संजय कुंदन
Kavita Kosh से
पुरानी चीज़ों को बदल लेने का चलन
ज़ोर पर था
जो चीज़ सबसे ज़्यादा
बदली जा रही थी
वह थी आँखें
डर लगा जब सुना कि
मेरे एक पड़ोसी ने लगा ली
एक शिकारी की आँखें
और समझदार कहलाने लगा
हर चौराहे पर लग रही थी हाँक
--बदल लो, बदल लो अपनी आँखें
घूम रहे थे बाज़ार के कारिन्दे
आँखें बदलने के लुभावने प्रस्ताव लेकर
एक विज्ञापन कहता था
आँखें बदलने का मतलब है
सफलता की शुरुआत
इस शोर-शराबे में कठिन हो गया था
उनका जीना जिन्हें अपनी नज़र पर
सबसे ज़्यादा भरोसा था
जो अपनी अँखों में बस
इतनी जीत चाहते थे
कि दिख सके एक मनुष्य
मनुष्य की तरह ।