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आँखों के दिये रौशन हैं तेरी अदाओं से / अनिरुद्ध सिन्हा

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आँखों के दिये रौशन हैं तेरी अदाओं से
रहने दो चिराग़ों को कुछ दूर हवाओं से

बाज़ारेमुहब्बत में हर सिम्त उजाला है
कुछ तेरी ज़फाओं से कुछ मेरी वफ़ाओं से

रहने दो अभी उसको ज़ख़्मों के हवाले ही
बीमारेमुहब्बत को क्या काम दवाओं से

सच हार गया फिर से क्या खूब अदालत है
हैरान बहुत हूँ मैं मुंसिफ़ की सज़ाओं से

खामोश हुई खुशबू हर फूल परेशां है
मौसम की बग़ावत से बेवक़्त घटाओं से