आँखों के सपने को मरने न देना
जीवन की इस लौ को बुझने न देना
कर्मों की भूमि में रहना कर्मरत
छलियों के छल बल को छलने न देना
विश्वासों के संबल लेकर के चलना
खुद को भी निश्चय से गिरने न देना
कांटों के जंगल में खुशियों की कलियाँ
दामन में भर लेना डिगने न देना
अंधेरों ने उर्मिल मुँह की है खाई
आशा के सूरज को ढलने न देना।