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आँखों में कोई ख़्वाब उतरने नहीं देता / मोहसिन नक़वी

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आँखों में कोई ख़्वाब उतरने नहीं देता
ये दिल कि मुझे चैन से मरने नहीं देता

बिछड़े तो अजब प्यार जताता है ख़तों में
मिल जाये तो फिर हद से गुजरने नहीं देता

वो शख्स खिजाँ रुत में भी मोहतात रहे कितना
सूखे हुए फूलों को बिखरने नहीं देता

इक रोज़ तेरी प्यास खरीदेगा वो गबरू!
पानी तुझे पनघट से जो भरने नहीं देता

वो दिल में तबस्सुम की किरण घोलने वाला
रूठे तो रूतों को भी सँवरने नहीं देता

मैं उस को मनाऊं कि गम-ए-दहर से उलझूं?
“मोहसिन” वो कोई काम भी करने नहीं देता.