आँखों में जी मेरा है इधर यार देखना / मीर तक़ी 'मीर'
आँखों में जी मेरा है इधर यार देखना
आशिक़ का अपने आख़री दीदार देखना
कैसा चमन के हम से असीरों को मना है
चाक-ए-क़फ़स से बाग़ की दीवार देखना
आँखें चुराईओ न टुक अब्र-ए-बहार से
मेरी तरफ़ भी दीदह-ए-ख़ँबार देखना
अए हम-सफ़र न आब्ले को पहुँचे चश्म-ए-तर
लगा है मेरे पाओं में आ ख़ार देखना
होना न चार चश्म दिक उस्स ज़ुल्म-पैशाह से
होशियार ज़ीन्हार ख़बरदार देखना
सय्यद दिल है दाग़-ए-जुदाई से रश्क-ए-बाग़
तुझ को भी हो नसीब ये गुलज़ार देखना
गर ज़मज़मा यही है कोई दिन तो हम-सफ़ीर
इस फ़स्ल ही में हम को गिरिफ़्तार देखना
बुल-बुल हमारे गुल पे न गुस्ताख़ कर नज़र
हो जायेगा गले का कहीं हार देखना
शायद हमारी ख़ाक से कुछ हो भी अए नसीम
ग़िर्बाल कर के कूचा-ए-दिलदार देखना
उस ख़ुश-निगाह के इश्क़ से परहेज़ कीजिओ 'मीर'
जाता है लेके जी ही ये आज़ार देखना