भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आँखों में नमी / कुँअर रवीन्द्र
Kavita Kosh से
इस भीषण गर्मी में
जब सूरज उगल रहा हो
दहकते अंगारे
तब तुम्हारे बच्चे स्विमिंग पूल में
शरीर ठंडा कर रहे होते हैं
और तब हमारे बच्चे
सूखी नदियों. तालाबों में
रेत के नीचे
कीचड की सूखी पपड़ियों के नीचे
ढूंढ रहे होते हैं बूँद भर पानी
सिर्फ जीभ की
नमी बचाए रखने के लिए
और शायद इसीलिये
उनकी आँखों में नमी अब भी बची हुई है