भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आँखों में बस तेरी सूरत / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
Kavita Kosh से
तुम मेरे मंदिर की मूरत
आँखों में बस तेरी सूरत।
नीरव आँगन में जलने दो
दुख की रातें अब ढलने दो।
पाकर तुझको अब क्या पाऊँ
तुझे छोड़ किस दर पर जाऊँ।
साँस -साँस से तेरा अर्चन
रोम -रोम से तेरा वन्दन।
कभी मुझे तुम दर्शन देना
अंतर की पीड़ा हर लेना।
गले लगाकर पीर हरो तुम
मन उपवन में फूल भरो तुम।