भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आँखों में वीरानी है / रोशन लाल 'रौशन'
Kavita Kosh से
आँखों में वीरानी है
चेहरा रेगिस्तानी है
नेता भी मनमौजी है
संसद भी मनमानी है
दरिया-दरिया भेद खुला
मृग-तृष्णा का पानी है
सूरत-सीरत जो कुछ हो
सब जानी-पहचानी है
जीने में सौ ख़तरे हैं
मरने में आसानी है