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आँखों में है शराब / आत्म-रति तेरे लिये / रामस्वरूप ‘सिन्दूर’

आँखों में है शराब, सरापा शबाब है!
तू मेरा ख़्वाब है कि इलाही का ख़्वाब है!

तू धूप, छांह, चाँदनी-शबनम का ख़्वाब है!
महताब कि जबीं प’ जड़ा आफ़ताब है!

शायर है तो जाहिर है तू खानाखराब है!
तू कामयाब हो-के भी नाकामयाब है!

साक़ी गमे फ़िराक प’ काबू न पा सका,
मैख़ाने कि हद में भी महकता गुलाब है!

दीदार उसका हो तो किस तरह से हो तुझे,
अनवारे-रुख प’ तेरी नज़र का हिजाब है!

तश्बीह दूँ तो कौन सी तश्बीह दूँ तुझे,
जिसका न हो जवाब, तू उसका जवाब है!

गा यार मेरे! तू मुझे साँसों के तार पर,
‘सिन्दूर’ तेरा गीत-ग़ज़ल की किताब है!