आँखों से मीठी शरारत करती हो तुम/ विनय प्रजापति 'नज़र'
लेखन वर्ष: 2002
आँखों से मीठी शरारत करती हो तुम
दिल ही दिल में मुहब्बत करती हो तुम
इक़रार करती नहीं इन्कार करती नहीं
फिर क्यों मुस्कुराया करती हो तुम
छुआ नज़रों ने जब तुझे पहली बार
तीरे-नज़र तेरा हुआ दिल के पार
रब से और कुछ माँगा नहीं माँगा तेरा दीदार
झूठ ही कह दो करती हो प्यार
कर लूँ तेरा एतबार…
आँखों से मीठी शरारत करती हो तुम
दिल ही दिल में मुहब्बत करती हो तुम
इक़रार करती नहीं इन्कार करती नहीं
फिर क्यों मुस्कुराया करती हो तुम
चाँद से चेहरे वाली तेरी ज़ुल्फ़ें हैं रात
होती नहीं कभी तेरी-मेरी मुलाक़ात
कोई तो बहाना हो मेरा तुझसे मिल पाना हो
चाँदनी हो जाये मेरी हर रात
हो जाये तेरी-मेरी मुलाक़ात…
आँखों से मीठी शरारत करती हो तुम
दिल ही दिल में मुहब्बत करती हो तुम
तुम्हें कहना तो होगा कहती नहीं हो
वह क्या बात है जिससे डरती हो तुम