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आँखों से मेरी कौन मेरे ख़्वाब ले गया / परवीन शाकिर

आँखों से मिरी कौन मिरे ख़्वाब ले गया
चश्म ए सदफ से गौहर ए नायाब ले गया

इस शहर से खुशजमाल को किसकी लगी है आह
किस दिलज़दा का गिरिया ए खूं नाब ले गया

वाँ शहर डूबते हैं इधर बहस कि उन्हें
खुम ले गया है या खुम ए मेहराब ले गया

गैरों की दुश्मनी ने न मारा मगर हमें
अपनों के इल्तिफात का ज़हराब ले गया

ए आँख अब तो ख़्वाब की दुनिया से लौट आ
मिज़गां तो खोल शहर शहर ए सैलाब ले गया