आँखों ही में रैन / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
63
नील गगन से भी बड़ा, हम दोनों का प्यार।
अमित प्यार का हो सदा, तुम ही तोरणद्वार
64
मुक्त रहे संताप से, तेरा उन्नत भाल।
चुम्बन चुम्बित चषक-से, तरलित नैन विशाल।।
65
सज्जन , दुर्जन जो मिले, सींचे सबके फूल।
फिर भी सारे बो गए,मेरे पथ में शूल।
66
चीर शिला को था मिला, हमको शीतल नीर।
कब धनपशु समझे यहाँ,क्या होती है पीर।
67
धन के बल पर कब मिला, सेठों को भगवान।
ढोल पीटकर जो करें,चौराहे पर दान।
68
दान दिया इस हाथ ने, ना जाने वह हाथ।
ऐसा दान सदा चला , दानवीर के साथ।
69
कुछ ऐसे भी लोग हैं,करें स्वार्थ हित दान।
अगर हित नहीं सध सका,माँग करें अपमान।
70
दानपात्र तो भर दिया, मन के मिटे न पाप।
भलों -भलों को है दिया,जीवन भर संताप।
71
संघर्षों में दिन कटा, आँखों में ही रैन।
कर्म सदा शुभ ही किए, मिला न फिर भी चैन।
72
आँसू की किस्मत यही, बह जाता हर द्बार।
नफरत तो दुनिया करे , बिरला करता प्यार।
73
जिसको मन में रोपकर, पूजा है दिन रात।
दो पल भी कब हो सकी, उससे मन की बात।
74
भूखे हैं जो देह के, नहीं जानते प्यार।
मन की खुशबू प्यार है, पावनता का सार।
75
गर्म तवे पर बैठकर, खाएँ कसम हज़ार।
दुर्जन बदलें न कभी, लाख करो उपचार।
76
जीवन के संग्राम का, मिला ओर न छोर।
हार नहीं मानें कभी, थामे आशा- डोर।।