भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आँख उनसे मिली तो सजल हो गई / तारा सिंह
Kavita Kosh से
आँख उनसे मिली तो सजल हो गई
प्यार बढने लगा तो गजल हो गई
रोज कहते हैं आऊँगा आते नहीं
उनके आने की सुनके विकल हो गई
ख्वाब में वो जब मेरे करीब आ गये
ख्वाब में छू लिया तो कँवल हो गई
फिर मोहब्बत की तोहमत मुझ पै लगी
मुझको ऐसा लगा बेदखल हो गई
वक्त का आईना है लवों के सिफर
लव पै मैं आई तो गंगाजल हो गई
'तारा' की शाइरी किसी का दिल हो गई
खुशबुओं से तर हर्फ फसल हो गई