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आँख कुछ बे-सबब ही नम तो / ज़ैदी
Kavita Kosh से
आँख कुछ बे-सबब ही नम तो नहीं
ये कहीं आप का करम तो नहीं
हम ने माना के रौशनी कम है
फिर भी ये सुब्ह शाम-ए-ग़म तो नहीं
इश्क़ में बंदिशें हज़ार सही
बंदिश-ए-दाना-ओ-दिरम तो नहीं
था कहाँ इश्क़ को सलीक़ा-ए-ग़म
वो नज़र माइल-ए-करम तो नहीं
मोनिस-ए-शब रफ़ीक़-ए-तंहाई
दर्द-ए-दिल भी किसी से कम तो नहीं
वो कहाँ और कहाँ सितम-गारी
कुछ भी कहते हों लोग हम तो नहीं
शिकवे की बात और है वरना
लुत्फ़-ए-पैहम कोई सितम तो नहीं
देख ऐ क़िस्सा-गो-ए-रंज-ए-फ़िराक़
नोक-ए-मिज़गाँ-ए-यार नम तो नहीं
उन के दिल से सवाल करता है
ये तबस्सुम शरीक-ए-ग़म तो नहीं