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आँख को / आत्म-रति तेरे लिये / रामस्वरूप ‘सिन्दूर’

आँख को बेहिजाब रहने दे!
जाम में कुछ शराब रहने दे!

नींद! आ गोद में सुला लूँ तुझे,
आज की रात ख़्वाब रहने दे!

मौत ऐसा न कर वफ़ाओं से,
हर अदा लाजवाब रहने दे!

देख मत बेरुख़ी की निगाहों से,
बेरुख़ी पर शबाब रहने दे!

रश्क ‘सिन्दूर’ से करे कोई,
बन्दगी का हिजाब रहने दे!