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आँख तोरेॅ / मीरा झा (रतैठा)

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बरसलोॅ बदरी के सुवास लेने मह-मह,
कातिक पुरनिमा के उजास लेने दह-दह,
पनगरोॅ चिकनोॅ अकासोॅ रं साफ छौं-आँख तोरेॅ ।
खोंयछा भरी मेघोॅ के कोर लेनें,
ठनका के ठनकैलोॅ-ठठैर्लोॅ इंजोर लेनें,
झरी-झरी झहरै छौंµआँख तोरोॅ ।
सुक्खोॅ-दुक्खोॅ के अथाह महासागर में,
बहैलोॅ साकांक्ष अकासदीप छाँछी में,
पैसलोॅ, गतिमान, तय्यो झक-झक छौं-आँख तोरोॅ ।
समुन्दर के पेटोॅ सें ढेहोॅ संगे फेंकलोॅ
चकमक इंजोर लेनें समस्या के सीपी में
मोती के ठोकलोेॅ-बजैलोॅ प्रतिमान छौं-आँख तोरोॅ ।
पथरोॅ के ढेरी में अनगढ़लोेॅ हीरा रं
जीवन के फेकलोॅ तरासलोॅ मुस्कान छौं-आँख तोरोॅ ।
शीतोॅ-बतासोॅ में नहैलोॅ चाँदनी सें
रातकोॅ टटका सिंगार रं परसस्तोॅ,
सुस्तैलोॅ सुकुमार, चमकदार छौं-आँख तोरोॅ ।
जीवन-वीणा के सरगम में
सातो सुर साधलोॅ झंकारलोॅ मधुमासोॅ रं
वाणी के एकटा वरदान छौं-आँख तोरोॅ ।
जे कहोॅ, आस-त्रास-मधुमास,
जिनगी के विकल प्यास,
एकांएकी घुरी-घुरी सब्भे कही जाय छौं-आँख तोरोेॅ ।